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Tuesday, November 13, 2012

कुछ और है


तुम्हारे मंजिलो का मुकाम कुछ और है 
मेरे रस्ते का ठीकाना कुछ और है 

हाथ जो पकड़ लोगे तुम मेरा जोर से 
मुड़ जाऊंगा शायद मै अगले मोड़ से 

राह दिखाकर भटका न देना तुम प्रिये 
दो घुट पिलाकर प्यासा न रखना तुम प्रिये 

अपनी मंजिले तो वही है जो तुम दिखाओ 
ये तो बस तरीका है की तुम और पास आओ 

और मेरी आँखों की बेबसी तुम कभी देख पाओ 
इनको देख कर साथ न छोर देना प्रिये

अपनी पुरानी कहानी फिर से दोहराना न प्रिये 
वरना इन मुड़े हुए पन्नो में खो जाऊंगा 

किताबो की धुल में फिर से सो जाऊंगा  
दुनिया की जुबान फिर से बढ़ चढ़ कर बोलेंगी

मेरी आँखों में तुमको फिर से तटोलेंगी
उनके सवालो में मेरे जवाबो का सम्बन्ध न होगा 

हर बार की तरह खुद से फिर सामना होगा 
अकेले में फिर कुछ कहूँगा खुद से 

तसल्ली एक बार और लूँगा खुद से 
मेरे रस्ते तुम्हारी मंजिले न ढूंढ पाए 

तुम्हारी आहटे मुझे और खीच लाये 
अब ये एहसास एक बार फिर से हो गया 

खुद से खुद का सामना फिर से हो गया 
तुमने बेबस कर ही दिया कहने को अब 

तुम्हारी मंजिलो का मुकाम कुछ और है 
मेरे रस्ते का ठीकाना कुछ और है 

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