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Tuesday, June 8, 2010

ye bandhan ye uljhan

मै तो बहुत आगे जाने वालो में से हु ना,
पर क्या करू मेरा बंधन मेरी उलझन बन गया है,
क्यों भइया क्या हो गया ?
क्या बताऊ  भइया अपना तो हाल ही ऐसा हो गया है ,
अरे कुछ बताओ तो ?
क्या कहू ये रिश्ते-नाते,समाज,मर्यादा,प्यार और परिवार,
सब मुझे अपने अपने जाल में बाँध दिए है भईया !
क्या करू कुछ बताओ ?
तुम ही कहते हो न की मै बहुत आगे जाऊँगा,

अरे मेरे लाल तू तो अभी भी बच्चा है
पक्का हो के भी कच्चा है , 
इस समाज में मर्यादा को प्यार से,
परिवार के रिश्ते-नातो को दुलार से,
अपने आप को मुक्त कर
नहीं तो ये सदियों की बेड़िया है 
खुद को संभाल, 
रास्ता निकाल, 
गिरा दे सारी दीवाल,
बस आज़ादी तो तेरे भीतर ही है,
उसको अब बाहर निकाल

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